The woods are lovely, dark and deep, But I have promises to keep, And miles to go before I sleep, And miles to go before I sleep.
Tuesday, March 25, 2014
Monday, March 24, 2014
दोह और में
"भाई आज आप अगर फ़िल्म नहीं देखोगे तो बात नहीं करूँगा। "
अक्षय गुस्से में था आज, और क्यों न हो भाई की फ़िल्म को चारो और से बधाईया मिल रही थी और में अभागा काम का मारा फ़िल्म देख ही नहीं पा रहा था :(
अक्षय ने लिंक भेजी , फिरसे , शायद तीसरी बार। इस रोज़ मेने पहला काम सब काम छोड़ के , लैपटॉप के सामने बैठके , फेन ऑफ करके , हैडफोन लगाके लिंक ओपन किया।
पहली छबि , जो होती हे , काफी असरकारक होती हे , टाइटल्स देख के ही थोडा बहोत अंदाज़ा आ जाता हे के कैसी फ़िल्म होगी कोई। और ख़ुशी होती हे के आपने फ़िल्म को इतनी ऊंचाई पे पहोचा दिया के देख के ही समज आ जाता हे कि फ़िल्म कितनी शानदार होगी।
स्क्रीन पे अँधेरा , अँधेरे में आवाज़े। भाई देखते ही मिलिउ सेट हो गया , अब और क्या था अगली बीस मिनिट मेरे पास फ़िल्म में बेह जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उपेक्षा कितनी अलग अजब चीज़ होती हे यह उपेक्षा और कुछ और ही रंग हो जाता हे उसका जब अपना ही कोई करता हे उपेक्षा , अच्छा नहीं लगता। पता नहीं पर पटकथा में यह प्यार अपनेपन और उपेक्षा के बीच में आपने जो संतुलन बनाया हे वोह काबिल -ए -तारीफ़ तो हे ही। और आपने उसी लिखाई का स्क्रीन पे चित्रण इतनी अच्छी तरह से किया हे उससे आपने सम्पूर्णता हासिल करली हे।
मेने जब फ़िल्म देखने कि शरुआत कि तो मेने सोचा था कि कुछ गलतिया निकलूंगा और फिर उसके बारे में आपसे सविस्तार चर्चा करूँगा , में कोई समीक्षक तो नहीं हु , लेकिन अब मुझे नहीं लगता के ऐसी कोई ज़रुरत हे और आप के काम को देखकर में सोच सकता हु के आगे शायद इसकी ज़रुरत नहीं होगी।
एक फ़िल्म बनाने के लिए बहोत ज़रुरत होती हे लोगो के साथ कि , ऐसे लोग जो आप कि कहानी को समाज पाये , आप कि सोच को जी पाये पाये भले ही थोड़े दिनों के लिए वोह आपकी दुनिया के चरित्र बन जाये। जिस तरह प्रमिति ने श्रुति को उजागर किया हे , मुझे नहीं लगता इसे परफेक्शन के अलावा कुछ और कहा जा सकता हे , राज जाधव ने जिस तरह ध्वनि में रंग मिलाये हे , उसने आपकी फ्रेम में आत्मा का एडिशन किया हे और प्रोडक्ट कैसा भी हो उसको अगर अच्छा दिखाया न जा सके तो काफी हद तक अधूरा रहता हे मुझे देखकर आनंद होता हे कि क्षमा जी इस बात को अच्छी तरह जानती है और उनका यह "मास्टरी ऑन आर्ट" फ़िल्म में हर जगह दिखाई दिया। खूब खूब धनयवाद आप कि पूरी टीम को।
विशाल भरद्वाज जी ने कहा है के बड़ी कमीनी चीज़ होती है येह स्क्रिप्ट , इंसान को नंगा कर देती है . आप जैसा सोचते हे आप ऐसा ही बनाएंगे और आनंद इसमें भी आता है कि रिश्तो कि फ़िल्म होते हुए भी मुझे न इसमें वुडी दिखाई देते हे न ओज़ू और ना ही आपके तार्कोस्की सिर्फ अक्षय ही दिखाई देते है। हर एक आदमी हर एक फ़िल्म से कुछ ना कुछ लेकर ही जाता है ,मेने भी दोह से कई चीज़े ली हे अब आपसे यही गुज़ारिश हे कि आप परोसते रहे हमें तो हम भी ले सके कुछ , अपने आप से।
आपका दोस्त
राहुल
२४ मार्च ,२०१४
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